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         बूँदों की सरगम

 
 
बूँदों की सरगम से
बज उठे नभ वीणा के तार
धरती की प्यास बुझाने उतरा
मेघ परिवार

कोमल पत्तियों
पर मोतियों सा ठहराव
झरनों का आलाप और पवन का बहाव
जगाता है
मन में एक
अद्भुत उल्लास-
होने लगता है प्रकृति की ओर झुकाव

मिट्टी की
महक ने छू लिया मेरा मन
उसकी सुगंध से याद आ गया बचपन
अंबर ने
ओढ़ ली है धुंधली-सी चादर
रिमझिम से खिल उठा उपवन उपवन

सड़कें बन गईं
मानो दर्पण जगमगाते
नन्हें नन्हें पाँव
जलक्रीड़ा में मुस्कुराते
बरखा नाचती है
जीवन की चौपाल में-
सागर ताल तलैया मन को हैं लुभाते

- डॉ अल्पना दीक्षित
१ सितंबर २०२५

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