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         बारिशों के पानी में

 
 
बारिशों के पानी में
उभरती हुई कहानी में
मैं भीगती हूँ इस तरह
पुरजोर भीगते हैं
मेरे शब्द जिस तरह

जज़्ब कर लेते हैं
बूँद बूँद भावना के सागर को
इस तरह
कविता आती जाती है फिर
पन्नों पर जिस तरह

कह जाती है जीवन की कथा
बोल जाती है हृदय की व्यथा
व्यथा कथा का ये नाता
प्रगाढ़ होता जाता है
इस तरह बूँदों का आना
मुझे खूब लुभाता है

- अनुपमा त्रिपाठी 'सुकृति'
१ सितंबर २०२५

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