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         बारिश और जीवन

 
 
बूँदें उतरती हैं आकाश से
जैसे जन्मता है जीवन

पहली बूँद हर्षाती है धरती को
जैसे पहली श्वास प्राण में प्रफुल्लित होती है
हर बूँद खोजती है अपना ठिकाना
जैसे जीवन तलाशता है अर्थ
कभी मिट्टी में समा जाती हैं
तो कभी नदी का मार्ग बनाती हैं

मानव भी कभी घर की दीवारों में
सिमटकर जीता है
तो कभी विश्व-नदी में बह निकलता है
बूँदें मिलकर ताल बनाती हैं
जैसे मनुष्य मिलकर समाज

ताल शांत भी रहता है
और तूफ़ानी लहरों में काँपता भी है
बूँदें वाष्प बनकर लौट जाती हैं
मनुष्य भी स्मृतियों में विलीन हो जाता है
बारिश कभी हल्की धुन बजाती है
तो कभी बिजली-गर्जन से भय जगाती है
वैसे ही जीवन कभी गीत है
कभी परीक्षा का वज्र-घोष

धरती की प्यास बुझाती बूँद
हृदय की करुणा बुझाती पीड़ा
बारिश की हर बूँद अनूठी है
जैसे हर जीवन का अनुभव
और अंततः
सारी बूँदें सागर में समा जाती हैं
जैसे समस्त जीवन अनंत में विलीन

- गरिमा सक्सेना
१ सितंबर २०२५

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