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         सावन

 
 
सावन
आँसू खुशी के
मेघराज का स्वागत करते ये तोरण
झाँझर बजते
चुँधियाती आँखे नहीं संभलती
तीर कामदेव के
मन पर चले मूसल
रूठे थे फूल देखो डोल रहे
प्रसन्न
बिखरी सुगंध ने दरवाजे के
खोल दिए मन
पंछी बन कर लूट लिए
बौराए आम
जंगल की ओर भूतों की रणभेरी
इंद्रजाल बनाती
तारे छुपे तो जाने क्यों
पेड़ गिरा
काले जादू से फूट गए
अंडे चिड़िया के
सर कूटते राहगीर के
माथे की तरह।

- हरिहर झा
१ सितंबर २०२५

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