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         मेघा रे अभिनंदन

 
 
मेघा रे अभिनन्दन
मन उपवन में लाए बहार
भंवरे तितली में भर झंकार
धो दिए पुष्प पात डाल- डाल
मिट्टी में सौंधी गंध उतार
हरियाने लगे खेत कछार
मेघा रे अभिनन्दन

जलधर जी
मन शान्त करो
यह रुद्र रूप यह तेज धार
आँगन पथ बने तालाब यहाँ
तालाब लिए
झीली विस्तार

मत पर्वत को झटके दो मीत
क्यों मिटा रहे घर गाँव द्वार
जलधर जी मन शान्त करो
पयोधर ओ सुनो जरा
रुकना मितवा क्यों बेजार

क्या आज ही खाली कर दोगे
सारी पूँजी यह जल अम्बार
दरिया- बाँधो का जलस्तर बढ़ा
ठहरो बदरा धरती लाचार
पयोधर ओ सुनो जरा

- डॉ. मधु संधु
१ सितंबर २०२५

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