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         बूँद एक बरसी है

 
 
बूँद एक बरसी है जीवन की
भीगा नभ भीगा मन
धरती का अंतर्मन
अंकुर बन फूटी हैं उम्मीदें जन जन की
बूँद एक बरसी है जीवन की

आतप ने सोख लिया मौसम का जीवन रस
तप्त हुए पात सभी डालियाँ भी मुरझाईं
मुरझाए फूलों की आँखें भर आई हैं

यही एक आशा विश्वास लिए जागी है
कलियाँ जो रातों को सोई नहीं
सपनों की नींद कहीं दूर के नगर में
वैरागी भंवरे की प्रीत की
बूँद एक बरसी है जीवन की

आए हैं मेघदूत उमड़ रहे नभ में
भरी माँग नदिया की मन के जल दर्पण में
हुलसित मन-आँगन में
सुधियो के पाखी की पोर पोर डूबी है पाँखें
आस जगी पाहुन के आने की
बूँद एक बरसी है जीवन की

- पद्मा मिश्रा
१ सितंबर २०२५

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