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         फेरीवाले बादल

 
 
पोटली में बाँधे
पनीली बूँदों की लच्छियाँ
काँधे पर लादे चले आते
गली-गली में शोर मचाते
फेरीवाले श्यामल बादल

भाप के रेशे- रेशे चुनकर
किरणों के चरखे पर चढ़कर
इन्द्रधनुषी ताना-बाना बुनते
आकाश करघे में दौड़ लगाते
कपास के नन्हें छौने से बादल

सागर से अपनी गागर भर
नदी गाँव खेत खलिहानों पर
उमड़ते घुमड़ते यूँ ही बरसकर
हरा भरा जन-जीवन कर जाते
रिमझिम रिमझिम पनिहारे बादल

सूखे तालों पोखर झीलों को
लबालब वर्षाजल से भरते
समरसता का सबक सिखाकर
झर - झर बूँदों के मोती लुटाते
भू-जल स्तर बढ़ा जाते बादल

बूँदों की लड़ियों में जगमग
अमलतासी स्वर्णिम झूमरों के
नव पल्लवी झूलों पर झूलते
भीनी स्मृतियों के मेले-ठेले सजाते
ठुमकते गमकते हरसिंगारी बादल

गुलमोहरी सिन्दूरी साँझ ढले
प्रेम रसायन तनमन में घोलकर
झिलमिल बूँदों का संगीत छेड़ते
अनुराग भरा उन्माद राग बिखराते
मधुमास की चिट्ठियाँ बाँचते बादल

- पारुल तोमर
१ सितंबर २०२५

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