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         बरसात

 
 
प्रकृति का रूप निखारने के लिए
बंजर भूमि में किसी बीज के
अंकुरित होने के लिए
तेज बरसात भी
जरूरी होती है कभी कभी

मूसलाधार बारिश में भी
कहाँ थमती है जिंदगी
निरन्तर गतिशील रहती
कभी छतरी ओढ़े
कभी रेनकोट पहने
रेलगाड़ी सी चलती जिंदगी
थाम ही लेती है अपनी मंजिल

ऐसे ही बदलती रहनी चाहिए
मन के भीतर की ऋतुएँ भी
ज्यादा देर की धूप
अच्छी नहीं लगती
होनी चाहिए तेज बरसात
कभी मन के आँगन में भी
जो सिर्फ तन को ही गीला न करे
मन को भी साफ करे
और बहा ले जाए.
स्मृतियों के पटल पर जमी
यादों की राख
जो बोझ के सिवा और कुछ नहीं
सुकून और शांति के लिए

होती रहनी चाहिए
कुछ कुछ अंतराल पर
ऐसी ही तेज बरसात

- रमा प्रवीर वर्मा
१ सितंबर २०२५

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