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         बारिश की फुहारें

 
 
आ गये बदरा
दिन में हुआ अँधियारा
झूम के बरसो सावन में
राह तके जग सारा

पेड़ भी सूखे
खेत भी सूखे
रूठ गईं हरियाती फसलें
सपने भी धुँधलाए

दो आँखें
जो तकती थीं बदरा
चमक उठी तक के अँधियारा
बूँद गिरी झूमे मन मयूरा
कर डालें हर सपना पूरा

जी उठे सोये से सपने
झम-झम बरसें
हर मन सरसे
नाच उठे सब अपने

- रेखा श्रीवास्तव
१ सितंबर २०२५

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