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         आषाढ़ बरस रहा है

 
 
आषाढ़ झूम झूम के
बरस रहा है
बादलों की त्योरियाँ ऐसे चढ़ी है
साफ आसमानी रंग
भी काला दिख
रहा है

कहीं मेघों ने वर्षा की अति कर दी है
कहीं फुहार की झड़ी लग गई है
सूखे ताल और तलैया, नाले और नदियाँ
अपनी सीमाएँ तोड़ते दिख रहे हैं
पुल पुलिया सड़कों पर
आवागमन रुक गया है

कहीं वर्षा के कहर से जीवन रुक गया है
खेत में धान की रोपनी हो रही है
धरती हरी चूनर ओढ रही हैं
बरसात फिर ताश की गड्डी खोल रही है

व्यस्त जिंदगी कोने में दुबक गई है
मोबाइल से गाद जैसे चिपक गई है
कभी राग मेघ मल्हार की तान सुनाई देती थीं
जिंदगी आँगन में भीग भीग
नाच करती दिखाई
देती थी

पर बह आनंद अब तनाव में खो गया है
समय कट रहा है आनंद अभी सो
रहा है

- संजय सुजय बासल
१ सितंबर २०२५

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