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         यादों की बारिश

 
 
गूँजते रहेंगे कुछ वादे
याद आएँगी कुछ बातें
वे भीगे लम्हे

और एक वह लाल छाता
वह हरियाली लिए गीली जमीन
वह जिस्म गीला और मेरे थरथराते लब
याद आएँगे तुम्हें हर बारिश में

वह कड़कती बिजली और सिमटना तुममें
वह गेसू खुले और तुम्हारी बेकाबू धड़कने
वह टिप टिप पानी की बूँदें और
मेरा भीगता अन्तस वह सिमट कर तुम्हारे
मेरा करीब आना
बहुत याद आएगा तुम्हे हर बारिश में

वह पलाश के फूल
महकती प्राजक्ता
वह गर्म साँसें तुम्हारी
और ठंडे होते मेरे हाथ
वह गीली मिट्टी में फिसलते मेरे कदम
और झट से मुझे थामना
एक साथ हम दोनों का फिसलना
वह चोट लगने के बावजूद मेरा खिलखिलाना
बहुत याद आएगा तुम्हे हर बारिश में

सुनो आ जाओ कि इस बार भी तुम
वह पलाश लाल छाता और महकती प्राजक्ता
आज भी भीगती है उस बारिश में
बस नही होते तो भीगते वहाँ तुम और मै!

- सुरेखा अग्रवाल स्वरा
१ सितंबर २०२५

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