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         बादल और बरसात

 
 
बादल से सूरज कहे ढँक दो मुँह इस शाम
भाग-दौड़ में थक गया कुछ तो दो आराम

पर्वत से टकरा करे बादल तो बरसात
दोहे न पर्वत कोई ऐसे हों हालात

बादल से करता रहा मैं मौसम की बात
मेरे घर को छोड़कर हुई मगर बरसात

कहीं नहीं सूखा रहे ऐसी हो बरसात
भींगे- भींगे दिन रहेंभींगी- भींगी रात

शहर हमारा हो गया ऐसे ही जलमग्न
सड़क टूटकर बह गई बचे रह गए भग्न

एक दिवस में हो गया जयपुर यों बेहाल
पानी-पानी हो गया बरखा करे कमाल

सावधान रहना सभी आ सकती है बाढ़
उफन रही ऐसे नदी रही कशीदे काढ़

टप-टप-टप गिरती रहीं बूँदें सारी रात
पलछिन भी ठहरी नहीं सावन की बरसात

बाँधों में चादर चली उफन रहे तालाब
गायों को लेकर बहा आया जब सैलाब

जल से शिव का कर दिया वर्षा ने अभिषेक
बूँद-बूँद करती रही अंजुलि भर‌ परिषेक

मन के शिव‌ का भी करेंजल से यों अभिषेक
उठकर शिव कैलाश से हम पर करें निषेक*

प्राण तत्व ही शिव यहाँ वरना हम शव जान
खुद को जल से सींच लो शिव का यही विधान

पानी के आगे नहीं चली किसी की एक
पर्वत जलधि पठार भी देते घुटने टेक

- सुरेन्द्र कुमार शर्मा
१ सितंबर २०२५

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