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         वर्षा ऋतु

 
 
वर्षा लेकर आ गयी है
ग्रीष्म की तपन से राहत

मन करता है
भीगते ही रहें खुली प्रकृति के आँगन में
जहाँ नहीं हो कोई छत
आसमान की काली घटाओं के साथ
खूब उछलें कूदें मौज मनाएँ

देखें भीगते वृक्षों को
लताओं को
घाटियों के बीच बहते
मौसमी झरनों को
स्कूल से लौटते भीगते बच्चों को
जो बहते पानी में कहीं भी
तिराने लगते हैं कागज की नाव

दरवाजे के बाहर
बरामदे की शहतीर पर बने
अपने घोंसलों से उड़कर
आँगन में आ गयी है
गर्मी से राहत पाने को बहुत सी गौरैयाँ

नहाती है धरती पर
एक छोटे गड्ढे के पानी में
मोह लेती है मन
छपक छपक छप छप

कभी कभी चमकती है बिजली
गरजते हैं बादल
बहक जाती है जिन्दगी
मचल उठता है यौवन
बरसने लगता है सावन
आम्रकुंज में पड़े झूलों से गूँजते हैं
गीतों के स्वर

वर्षा में भीगने का आनंद
सभी का मोह लेता है मन
लेकर नयी उमंग
प्रफुल्लित होकर नाच उठता है
मन मयूर

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ सितंबर २०२५

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