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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

साँवले घन छा गए हैं

याद बन-बनकर गगन पर
साँवले घन छा गए हैं

ये किसी के प्यार का संदेश लाए
या किसी के अश्रु ही परदेश आए।
श्याम अंतर में गला शीशा दबाए
उठ वियोगिनी! देख घर मेहमान आए
धूल धोने पाँव की
सागर गगन पर आ गए हैं

रात ने इनको गले में डालना चाहा
प्यास ने मिटकर इन्हीं को पालना चाहा
बूँद पीकर डालियाँ पत्ते नए लाईं
और बनकर फूल कलियाँ खूब मुस्काईं
प्रीति-रथ पर गीत चढ़कर
रास्ता भरमा गए हैं

श्याम तन में श्याम परियों को लपेटे
घूमते हैं सिंधु का जीवन समेटे
यह किसी जलते हृदय की साधना है
दूरवाले को नयन से बाँधना है
रूप के राजा किसी के
रूप से शरमा गए हैं

- रमानाथ अवस्थी

21 अगस्त 2005

  

बूँद टपकी नभ से

बूँद टपकी एक नभ से
किसी ने झुक कर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो
हँस रही-सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो
ठगा-सा कोई किसी की
आँख देखे रह गया हो
उस बहुत से रूप को
रोमांच रोके सह गया हो।

बूँद टपकी एक नभ से
और जैसे पथिक छू
मुस्कान चौंके और घूमे
आँख उसकी जिस तरह
हँसती हुई-सी आँख चूमे
उस तरह मैंने उठाई आँख
बादल फट गया था
चंद्र पर आता हुआ-सा
अभ्र थोड़ा हट गया था।

बूँद टपकी एक नभ से
ये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोखा बंद हो ले
और नूपुर ध्वनि झमक कर
जिस तरह द्रुत छंद हो ले
उस तरह
बादल सिमट कर
और पानी के हज़ारों बूँद
तब आएँ अचानक।

- भवानी प्रसाद मिश्र

02 सितंबर 2001