अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

नाच रे मयूरा

नाच रे मयूरा!

खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगन
देख सरस स्वप्न, जो कि
आज हुआ पूरा!
नाच रे मयूरा!

गूँजे दिशि-दिशि मृदंग,
प्रतिपल नव राग-रंग,
रिमझिम के सरगम पर
छिड़े तानपूरा!
नाच रे मयूरा!

सम पर सम, सा पर सा,
उमड़-घुमड़ घन बरसा,
सागर का सजल गान
क्यों रहे अधूरा?
नाच रे मयूरा!

- पं नरेंद्र शर्मा
19 अगस्त 2005

  

मन मयूर नाचे

घिरा गगन
मुदित मगन
मन मयूर नाचे!

ग्राम नगर सभी डगर
बूँदों की टपर-टपर
चपला की जगर मगर
रात्रि पत्र बाँचे!

पवन हुई मदिर-मदिर
वन पल्लव पुष्प रुचिर
जुगनू के बाल मिहिर
भरते कुलांचे!

हरित चुनर श्यामल तन
वर्षा ऋतु चितरंजन
इंद्रधनुष का कंगन
सतरंगा साजे!

दूर हुई कठिन अगन
धरती की बुझी तपन
कोकिल-शुक-पिक-खंजन
बोल कहें साँचे

बारिश की यह सरगम
पानी की यह छम-छम
सावन का यह मौसम
साल भर विराजे

-पूर्णिमा वर्मन
19 अगस्त 2005

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter