विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 

आज के रावण - कुछ दोहे

साथी बढते देखकर, रावण करे विचार
त्रेता में मैं एक था, कलयुग में भरमार !

पुतले फुँकते देखकर, रावण सोचे वाह
अंत न मेरा कर सके, खूब निकाली राह !

रावण, राक्षस जन्म से, ज़ाहिर थी पहचान
अब के रावण अति चतुर, सूरत से इंसान !

रावण दिखते हर तरफ़, मचा रहे उत्पात
मन से राक्षस हो रही, इंसानों की जात।

कैसे पाप उजागरे, साँस ले सके साँच
रावण के अपराध की, रावण करते जाँच।

-ओंम प्रकाश नौटियाल


 

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