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        जीतेगा हर युद्ध

 
वश में जिसके इन्द्रियाँ, अन्तर् होगा शुद्ध
अनाचार के सामने, जीतेगा हर युद्ध

आडम्बर अभिमान से, मिलकर रचता पाप
किन्तु मिले जब सत्य से, मन होता निष्पाप

सबसे बड़ा दरिद्र वह, जीत-हार सब व्यर्थ
कोठी जिसने खड़ी की, करके लाख अनर्थ

मद ने सीमा पार की, मर्यादा के ठौर
सबको मालूम चल गया, सत्य सदा सिरमौर

घर के बुझे चिराग सब, रंग हुए बदरंग
पौरुष ने की मित्रता, अहंकार के संग

बाहर मीठे बोल हैं, भीतर सौ दुर्भाव
दण्ड मिलेगा देखना, सह न सकेंगे घाव

अहंकार का हो गया, पल भर में उद्धार
अनाचार पैरों गिरा, सदाचार के द्वार

मिले सुरक्षा सभी को, मिले सभी को अन्न
वही विजय उत्सव वही, जिससे प्रजा प्रसन्न

मद के पहलू में छिपे, कलुष, कपट, अन्याय
हर युग में हारे सदा, जीते करुणा, न्याय

मानवता का धर्म ही, सब धर्मों में ज्येष्ठ
हित जो करे समष्टि का, राह वही है श्रेष्ठ

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'
१ अक्टूबर २०२१

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