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        यही हमारी जीत

 
सुख का मुख देखा नहीं, हारा करके प्रीत
दुख को कहीं न ठाँव दी, यही हमारी जीत

संकट पर संकट घिरें, मत होना भयभीत
हार, थार से दो कदम, पर रहती है जीत

दुर्दिन गिनकर चार दिन, जायेंगे सब बीत
एक-एक पल की खुशी, जीत सके तो जीत

उर में बहुत मलाल हैं, लाल, हरे कुछ पीत
मगर चाँदनी सी चमक, लिये छिपी है जीत

सगा,पड़ोसी,दूर का, दुश्मन हो या मीत
दो अक्षर में दर्ज हो, सबके दिल पर 'जीत'

शाश्वत है शुचि-सत्य है, एक अनोखी रीत
चाह जीत की हार है, हार चाहना जीत

खड़ी दुपहरी जेठ की, बरखा हो या शीत
जो समतापी बन जिया, वही सका है जीत

- उमाप्रसाद लोधी
१ अक्टूबर २०२१

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