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        विजय मिलेगी

 
विजय मिलेगी, पर खोलो तुम
हो अनगिन चाहें बातें फिर

ऊँचा-ऊँचा उड़ें गगन में
धो दे चोटें हैं जो मन में
पग को डगमग मत करना तू
स्याह घनेरी हो रातें फिर

होंगी तानों की बौछारें
कस-कस के सब अपने मारे
हाँ तुम ये गुन लेना उस पल
सरगम ये आते-जाते फिर

हटा उदासी सरसों वाली
सोचें हैं जो बरसों वाली
नूतन युग का कोई किस्सा
तानेबाने में कातें फिर

भय निकाल दे अब तू मन का
पिरो नये तागे में मनका
उगे सवेरा उजला-उजला
मले रात के मुख राखें फिर

- दिव्या राजेश्वरी
१ अक्टूबर २०२१

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