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        जीवन संग्राम में

 
जन जन के जीवन में अमृत बन बरसो माँ
विजया बन उतरो माँ
जीवन संग्राम में

दूर हटें अन्यायी निशिचर दानवता के
आज हो पराजित-वह मानव का शत्रु
दिव्य ज्योति बिखराओ
अनय, कलुष मिट जाये
विजया बन उतरो माँ
जीवन संग्राम में

आतंकी रक्तबीज जीवित है आज भी
आज भी पुकारती है पीडिता बसुन्धरा
काल सर्प हाथ लिये आओ रक्तदंतिका
विजया बन उतरो माँ
जीवन संग्राम में

पलता अभावों का महिषासुर हर घर में
संतापित जीवन का हर पल अर्पित तुमको
भूखे नौनिहालों को तृप्ति दो, त्राण दो
जननि भाव साथ लिये -आओ माँ अन्नदा
विजया बन उतरो माँ
जीवन संग्राम में

नवल सृजन, नवल भाव, नवल राग साथ लिये
जन मन में सपनों में रंग नए भर जाओ
इच्छित वरदानों को, अब तो साकार करो
आशा विश्वास लिये, आओ माँ सिद्धिदा
विजया बन उतरो माँ
जीवन संग्राम में

संघर्षों के पथ पर - थक कर जो बैठ गयीं
सदियों से उत्पीडित,कलुषित आभाओं को
बुद्धि, ज्ञान, वैभव का अद्भुत वरदान दो -
मन की अज्ञानता का, अंध तिमिर नाश करो
ज्ञान का प्रकाश लिये आओ माँ शारदा
विजया बन उतरो माँ
जीवन संग्राम में

मानव उद्धार हेतु -दानव संहार करो
दिव्य ज्योति बिखराओ,अनय कलुष मिट जाये
हाथों में खड्ग लिये
आओ माँ !-कालिका
विजया बन उतरो माँ
जीवन संग्राम में

- पद्मा मिश्रा
१ अक्टूबर २०२१

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