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        बढ़ती सर्दी

 

बढ़ती शीतलता लिये, आया अगहन मास
लम्बी रातें कर रहीं, लघु दिवसों घर वास
लघु दिवसों घर वास, वनस्पति भी अलसायी
सरसों गेहूँ जई, ले रहे हैं अँगड़ाई
सुनो 'रीत' कविराय, शिशिर यह कविता पढ़ती
शीतलता के साथ, प्रकृति की सुष्मा बढ़ती

जाड़ा सैनिक आ गया, पहन धुंध के वस्त्र
शीतलहर हिमपात के, लगा चलाने शस्त्र
लगा चलाने शस्त्र, चराचर को यूँ घेरा
जैसे चारों ओर, मेघ हों डाले डेरा
कहे 'रीत' कविराय, धूप को दूर पछाड़ा
घर-घर में तैनात, हुआ सैनिक सा जाड़ा

सरदी बढ़ने पर सभी, करने लगे उपाय
कोई मेवे खा रहा, पीता अदरक-चाय
पीता अदरक-चाय, गोंद-पंजीरी खाता
मोठ बाजरी कूट, खीचड़ा नित्य बनाता
अरे! 'रीत' कविराय, बात सबकी तो कर दी
कहो झोपड़ी तनिक, बिताती कैसे सरदी

-परमजीत कौर रीत
१ दिसंबर २०२०

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