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भोर खड़ी दरवाजे पर

सर्द सुबह

अंधियारे गलियारों
की सर्द हवाओं को तजकर
कोहरे की चादर में लिपटी भोर
खड़ी दरवाजे पर

जाड़े की वो प्यारी बातें
दिन, बौना और
लम्बी रातें
ख़त डालकर अंगनाई में,
धूप बुनेगी सौ जज्बातें
उम्मीदों की
गठरी बाँधे,
ओस की बूँदों से सजकर
कोहरे की चादर में लिपटी भोर
खड़ी दरवाजे पर

नानी माँ के तिल के लड्डू.
नुक्कड़ की वो
गरम जलेबी
गन्ने का रस गुड की ढेली,
भली लगे अमृत फल से भी
देर शाम तक
पुरवाई में
तफरी के दिन जाएँ गुजर
कोहरे की चादर में लिपटी भोर
खड़ी दरवाजे पर

अरमानो के डालके झूले,
खेतों में फिर
सरसों फूले
हुलस हुलस कर अम्बर आए,
खुद अपने आनन को छूले
हौले से
मुसकाए धरती,
हरियाली की ओढ़ चुनर
कोहरे की चादर में लिपटी भोर
खड़ी दरवाजे पर

- नियति वर्मा
१ दिसंबर २०१९

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