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सर्द सुबह में

सर्द सुबह

सूरज की मनमानी टोंकें 
ऊँचे स्वर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
ख़ातिर तरसे हम

दुनिया की आँखों में अपना
यही गुनाह रहा
दो और दो को हर हालत में
हमने चार कहा

पाँच नहीं कह सके 
तनी भौंहों के डर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की 
ख़ातिर तरसे हम

पीछे खड़े प्रलोभन
आगे अपना खड़ा ज़मीर
लोग बाँधने चले
हवा के पाँवों में जंज़ीर
समझौता कुछ कर न सके 
अपने शायर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की 
ख़ातिर तरसे हम

दुश्मन हो कर नहीं
प्रचारित करते खुद को मित्र
ओढ़ दोगलेपन की चादर
रखते नहीं चरित्र
जैसे बाहर से दिखते
वैसे भीतर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की 
ख़ातिर तरसे हम

- वीरेन्द्र कुअँर
१ दिसंबर २०१९

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