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आलोक श्रीवास्तव की
चार छंदमुक्त वासंती रचनाएँ
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इस क्षण

मैं तुम्हें छूना नहीं चाहता
कम से कम
इस पल बिल्कुल नहीं

तुम अपने ही द्नीपों में
राजहंसिनी की तरह विचरती
इस मेघबेला में
धरती का एक दुर्लभ दृश्य हो
मैं तुम्हें सिर्फ देखना चाहता हूँ

हालाँकि यह मुमकिन नहीं
पर चाहता हूँ कि समय
तुम्हारी इस भंगिमा में थम जाए

आकाश समूचा उठे
और ब्रह्मांडे में खो जाएँ

सिर्फ तुम रहो
जाज्वल्य, प्रदीप्त
अंतर्मन वाली तुम
पवित्र, वनस्पतिगंधा तुम
धरती की मोहमयी अमर
वरदायिनी कविता

क्या इतना उजला
कोई सवेरा होता है?
इतनी गहरी कोई रात
कोई हवा इतनी विरल
कोई गीत इतना मंद्र
कोई राग इतना सघन?

औऱ क्या कोई
इतना सुंदर भी होता है?
कम से कम इस पल तो
पूरी दुनिया में कोई नहीं है
सिवा तुम्हारे!

एक आवाज़

प्रेम
शायद एक आवाज़ का नाम है
जो तुम्हारी नहीं है
किसी सुदूर नदी की है

किसी बहुत दूर के वक्त की
तुम्हारी आवाज़
जिसका कतरा पड़ते ही कानों में
काँपकर रह जाता है
पूरा वजूद

मैं तुममें तुम्हें नहीं
उस विराट दुनिया को देखता हूँ
जिसके जर्रे
मुकम्मल होकर
तुम्हें रचते हैं
और
तुम मेरे लिए
एक आवाज हो
जो किसी
सुनसान रास्ते पर
अब भी सुनाई पड़ जाती है!

१५ फरवरी २०१०

  दिखाना तुम साँझ तारे को

तुम मुक्त पाँखी की तरह उड़ना
लहरों की तरह
खेलना चट्टानी तट से
देश-देशावर में सुगंध की तरह
फैली रहना तुम

मेरा प्रेम तुम्हें बाँधेगा नहीं
वह आसमान बनेगा
तुम्हारी उड़ान के लिए
तुम्हारे स्वप्न के लिए नींद
तुम्हारी गति के लिए प्रवाह
तुम्हारी यात्रा के लिए प्रतीक्षा

प्रिय तुम
अपनी ही खुशबू में खिलना
अपनी ही कोमलता में
दिखना तुम साँझ तारे को

मेरा प्रेम लौटा देगा तुम्हें
सुदूर किसी नदी के किनारे छूटा
तुम्हारा कैशोर्य

वह तुम्हें आगत युगों तक ले जाएगा
भव्यता के, सौंदर्य के
उस महान दृश्य तक
जो तुम खुद हो
और जिसे मैंने
जीवन भर निहारा है
अपने एकांत में!

तुम्हारे वसंत का प्रेमी

मैं तुम्हारे वसंत का प्रेमी
तुम्हारी ऋतु का गायक हूँ

तुम कहीं भी जाओ
तुम्हारे होने की खुशबू
मुझ तक आती रहेगी
हवाएँ तुम्हारे गीत बाँधकर
दिशाओं के हर कोने से
मुझ तक लाएँगी

मैं तुम्हारे खिलाए फूलों में
तुम्हारी उँगलियों का स्पर्श चूमूँगा
तुम्हारी पलक छुऊँगा
तुम्हारे स्वप्न से भरी कोपलों में

झरनों के निनाद में
तुम्हारी हँसी गूँजेगी
पलाश वन को निहारेंगी मेरी आँखें
जो रंगा है
तुम्हारी काया की रंगत में
मैं तुम्हें खोजने
देशावर भटकूँगा

तुम मुझे भूलना मत
लौटना हर बार

मैं तुम्हारी राह तकूँगा...

मैं तुम्हारे वसंत का प्रेमी
तुम्हारी ऋतु का गायक हूँ!

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