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३१. ८. २००९

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रेशमी कंगूरों पर नर्म धूप

  रेशमी कंगूरों पर
नर्म धूप सोयी।
मौसम ने
नस-नस में
नागफनी बोयी!
दोषों के खाते में कैसे लिख डालें
गर अंगारे याचक बन पाँखुरियाँ
माँग गए

कच्चे रंगों से
तसवीर बना डाली,
हल्की बौछार पड़ी
रंग हुए खाली।
कितनी है दूरी, पर, जाने क्या मजबूरी
कि
टीस के सफ़र की कई सीढ़ियाँ,
फलाँग गए।

खंड-खंड अपनापन
टुकड़ों में
जीना।
फटे हुए कुर्ते-सा
रोज़-रोज़ सीना।
संबंधों के सूनेपन की अरगनियों में
जगह-जगह
अपना ही बौनापन
टाँग गए!

- कन्हैयालाल नंदन

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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