प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित
 
पत्र व्यवहार का पता

१. ८. २०११

अंजुमन उपहार काव्य संगम गीत गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति
हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला

फिर क्यों मन में संशय तेरे

 

फिर क्यों मन में संशय तेरे
जब-जब दीप जलाये तूने
दूर हुये हैं घने अंधेरे
फिर क्यों मन में संशय तेरे

स्वयं शीघ्र धीरज खोता है
क्रोध कि ऐसा क्यों होता है
नियति नवाती शीश उसी को
जो सनिष्ठ इक टेक चले रे
फिर क्यों मन में संशय तेरे

वीर पराजित हो सकते हैं
जय की आस नहीं तजते हैं
निष्प्रभ होकर डूबा सूरज
तेजवन्त हो उगा सवेरे
फिर क्यों मन में संशय तेरे

जग में ऐसा कौन भला है
जिस पर समय न वक्र चला है
धवल-वर्ण हिमकर को भी तो
ग्रस लेते हैं तम के घेरे
फिर क्यों मन मे संशय तेरे

मान झूठ अपमान झूठ है
जीवन का अभिमान झूठ है
जग-असत्य की प्रत्यंचा पर
सायक हैं माया के प्रेरे
फिर क्यों मन में संशय तेरे

- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

दिशांतर में-

दोहों में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
२५ जुलाई २०११ के अंक में

गीतों में-
नवीन चतुर्वेदी

अंजुमन में-
प्राण शर्मा

छंदमुकत में-
मीनाक्षी धन्वंतरि

हाइकु में-
सुदर्शन प्रियदर्शिनी

पुनर्पाठ में-
उमा असोपा

अन्य पुराने अंक

अंजुमनउपहार काव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंकसंकलनहाइकु
अभिव्यक्तिहास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतरनवगीत की पाठशाला

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है।

अपने विचार — पढ़ें  लिखें

Google

 

Search WWW  Search anubhuti-hindi.org


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०