| 
                 
            
                   
					सूरज फिर  
					से हुआ लाल है 
                  		 | 
                      
						 
					एक अरसे बाद 
					फिर सहमा हुआ घर है  
					आदमी गूँगा न बन जाये  
					यही डर है  
					 
					याद फिर भूली हुई  
					आयी कहानी है, 
					एक आदमखोर  
					मौसम पर जवानी है, 
					हाथ जिसका आदमी के  
					खून से तर है  
					 
					सोच पर प्रतिबंध का  
					पहरा कड़ा होगा, 
					अब बड़े नाख़ून वाला  
					ही बड़ा होगा, 
					वक्त ने फिर से किया  
					व्यवहार बर्बर है। 
					 
					पूजना होगा  
					सभाओं में लुटेरों को  
					मानना होगा हमें  
					सूरज अँधेरों को, 
					प्राणहंता आ गया  
					तूफान सर पर है। 
					 
					कोंपलें तालीम लेकर  
					जब बड़ी होंगीं, 
					पीढ़ियाँ की पीढ़ियाँ  
					ठंडी पड़ी होंगी, 
					वर्णमाला का दुखी  
					हर एक अक्षर है  
						
					- मयंक श्रीवास्तव  |