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						वाल्मीक की प्रथा निभाई 
						हमसे नहीं गई 
						 
						जप-जप उल्टा  
						नाम कहाँ तक ब्रह्म समान बनें 
						सोच-समझ अनुभव के जाए तीर कमान तनें 
						रामायण की सीता गाई 
						हमसे नहीं गई 
						 
						दुनिया दारी  
						बाहर यारी के झण्डे बाँधे 
						भीतर-भीतर शातिर चालें चलते दम साधे 
						उनकी गठरी और उठाई 
						हमसे नहीं गई 
						 
						गाँवों की  
						गलियों में अब बारूद पनपता है 
						अंधी जाग्रति वाला अंधा नाग सनकता है 
						दौड़ भयंकर यह रुकवाई 
						हमसे नहीं गई 
						 
						चम्पा भी  
						अब चीन्ह रही है किस्मत के काले अक्षर 
						पूछ रही है भाग हमारे किसने ये डाले अक्षर 
						उत्तर वाली पंक्ति पढ़ाई 
						हमसे नहीं गई। 
						- राजा अवस्थी  |