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२७. ५. २०१३

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धुंध के उस पार

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इस जगत की
जीत से तो भली लगती हार
इसलिए आओ चलें इस धुंध के
उस पार

देह दलदल
में फसे हैं साधना के पाँव
दूर काफी दूर लगता साँवरे का गाँव
क्या उबारेंगे कि जिनके दलदली आधार
इसलिए आओ चलें इस धुंध के
उस पार

पल अतिथि
पल भर ठहर कर लूँ तनिक सत्कार
हाय निर्मम चल दिया तू हो लिया उसपार
है जहाँ पल भी न अपना क्या करें मनुहार
इसलिए आओ चलें इस धुंध के
उस पार

भूत और
भविष्य की युग-संधि यह संसार
और जिस में जी रहे वह वर्तमान असार
मैं निरंतर ही ठगा जाता रहा इसपार
इसलिए आओ चलें इस धुंध के
उस पार

साथ जीवन
के निरंतर मृत्यु का संवाद
धर्म ज्यों कुरु-क्षेत्र से उभरा हुआ भय-नाद
नाद में 'नीरव' मिलन की कामना बेकार
इसलिए आओ चलें इस धुंध के
उस पार

- ओम नीरव

इस सप्ताह

गीतों में-

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ओम नीरव

अंजुमन में-

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नीरज गोस्वामी

छंदमुक्त में-

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अजय ठाकुर

क्षणिकाओं में-

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मनु मनस्वी

पुनर्पाठ में-

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सुमन कुमार घई

पिछले सप्ताह
२० मई २०१३ को प्रकाशित नीम पर आधारित विशेष अंक में

गीतों में- यश मालवीय, अश्विनी कुमार विष्णु, आकुल, कुमार रवीन्द्र, कृष्णनंदन मौर्य, जगदीश पंकज, धर्मेन्द्र कुमार सिंह, नितिन जैन, रवि शंकर मिश्र रवि, राजेन्द्र गौतम, डॉ रूपचंद्र शास्त्री मयंक, रोहित रूसिया, शीलेन्द्र सिंह चौहान, सुभद्राकुमारी चौहान, सुरेन्द्रपाल वैद्य, हरिहर झा छंदमुक्त में- उपेन्द्र कुमार, उर्मिला शुक्ल, केदारनाथ अग्रवाल, गीत चतुर्वेदी, नरेश सक्सेना, परमेश्वर फुँकवाल, पूर्णिमा वत्स, प्रतिभा गोटीवाले, मंजुल भटनागर, राजेन्द्र कांडपाल, सरस दरबारी, सरस्वती माथुर अंजुमन में- कल्पना रामानी, रामकुमार कृषक, राज गोपाल सिंह, रामशंकर वर्मा, विश्वंभर शुक्ल, शशि पुरवार, सुवर्णा दीक्षितदोहों में- ओम नीरव, डंडा लखनवी, रमेश शर्मा, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, कुछ संकलित दोहे। मुक्तक में-नवीन चतुर्वेदी, पूर्णिमा वर्मन, लक्ष्मीदत्त तरुण

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी

 

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