|  | सोनचंपा 
						महकती रही रात भरचाँदनी सुख की झरती
 रही रात भर
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 गंध उमगी खरी
 मन की मटकी भरी
 इक झरी पंखुरी थाम अँजुरी धरी
 यों  त्रिभंगी  खड़ी,  ताल  की  
						जलपरी
 हाय! सबको लगी मनभरी मनभरी
 दीठि नटिनी
						ठुमकती
 रही रात भर
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 कोई लाकर
 सितारे यहाँ रख गया
 हौले हल्दी के दीपक जलाकर गया
 किसने---केसर---के---पोरों---से---चंदा---छुआ
 और चंदन के छींटों से पढ़ दी दुआ
 रूप गंधा लहकती
 रही रात भर
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 दंग सावन
 ने लहराई अमृत लड़ी
 घर नगर द्वार, मंगल धमाचौकड़ी
 छूटी बिजली की आकाश में फुलझड़ी
 उत्सवों से लदी सोनचंपा खड़ी
 धुन सितारों की बजती
 रही रात भर
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 - पूर्णिमा वर्मन
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