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अभिव्यक्ति-तुक-कोश

२३. ३. २०१५-

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भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ

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जिंदगी के
इस सफर में भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
गीत हूँ मै, इस सदी का, व्यंग्य का
किस्सा नहीं हूँ

शाख पर
बैठे परिंदे प्यार से जब बोलतें है
गीत भी अपने समय की हर परत
को खोलते हैं
भाव का खिलता कँवल हूँ
मौन का भिस्सा नहीं हूँ

शब्द उपमा
और रूपक वेदना के स्वर बनें हैं
ये अमिट धनवान हैं जो, छंद बन
झर झर झरे हैं
प्रीति का मधुमास हूँ
खलियान का मिस्सा नहीं हूँ

अर्थ बिम्बों में
समेटे, राग रंजित मंत्र प्यारे
कंठ से निकले हुए स्वर कर्ण प्रिय
मधुरस नियारे
मील का पत्थर बना हूँ
दरकता सीसा नहीं हूँ।

- शशि पुरवार

 

इस सप्ताह

गीतों में-

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शशि पुरवार

अंजुमन में-

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लोकेश नदीश

छंदमुक्त में-

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किशोर दिवसे

लंबी कविता में-

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शेषनाथ प्रसाद

पुनर्पाठ में-

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संजय कुमार पाठक

पिछले सप्ताह
१६ मार्च २०१५ के अंक में

गीतों में-

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पंकज
परिमल

अंजुमन में-

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन

छंदमुक्त में-

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पंकज त्रिवेदी

दोहों में-

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राजेन्द्र सारथी

पुनर्पाठ में

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संगीता मनराल

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
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