अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

मलखान सिंह सिसौदिया

मलखान सिंह सिसोदिया हिंदी की प्रगतिशील कविता के अग्रिम पंक्ति के कवि हैं। उनका लेखन काल 1941 से प्रारंभ हुआ और आज भी वे साहित्य समाज में सार्थक कवि साधक समझे जाते हैं।

उनके अभी तक 6 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं-

  • बंगाल के प्रति और अन्य कविताएँ (1945)

  • सूली और शांति (1967)

  • दीवारों के पार (1974)

  • कुआँ बोलता है (1986)

  • अँधियारों से लड़ता हुआ (1990)

  • बात की चिड़िया (1992)



 

  धूप मजूरिन

सूरज उगते ही आ जाती
नित्य काम पर धूप मजूरिन

पूरे दिन खटती रहती है
तनिक विराम नहीं करती है
संझबेला होने पर थक कर
घर को जाती धूप मजूरिन

हर छिन कड़ी नज़र के नीचे
बिन बोले ओंठों को भींचे
भू की ओर किए मुँह रहती
लगी काम में धूप मजूरिन

नहा पसीने से जाती है
तेज ताप में तप जाती है
पांव झुलस जाते भूघर में
पर श्रम करती धूप मजूरिन

भूख प्यास पूछता न स्वामी
बंधुआ जीवन कठिन गुलामी
ऊपर से मौसम की मारें
सबकुछ झेले धूप मजूरिन

उर में आग सुलगती रहती
उसके तनमन दहती रहती
जेठ-क्वार में भड़क विप्लवी
ज्वाला बनती धूप मजूरिन

24 जून 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter