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ज्योत्सना शर्मा के मुक्तक

 

 

जीवन सफर है

एक
जीवन सफर है सफर कर रहे हैं
मिट्टी का घर है बसर कर रहे हैं
हममें हमारा यहाँ क्या बचा है
तुमको तुम्हारी नज़र कर रहे हैं


दो
चाँद को चाँदनी से हों क्यों कर गिले,
वो मिले जब भी उससे हँस कर मिले
प्रीत की एक प्यारी यही रीत है
गैर को कैसे अपना बनाकर मिले


तीन
महकता रहे चाहतों का चमन
सुवासित रहे ये धरा ये गगन
खिले भाव के मेरे स्वर्णिम कंवल
ज़रा छू गये तेरे पारस नयन


चार
जीतना या हारना तकदीर है
बस सतत संघर्ष ही तदबीर है
किस तरह मुस्कान अधरों पर खिले
जब हृदय को भेंट उनकी पीर है


पाँच
प्रश्न तूने हमे आज कितने दिए
हल, कठिन या सरल हमने उतने किये
हाथ उम्मीद का फिर भी छोड़ा नहीं
जिंदगी ने जतन चाहे जितने किये


छह
हर लीला बिहारी की न्यारी लगे
संग राधे प्रिया सुकुमारी लगे
वो आएँ ना आएँ उनकी खुशी
बेरुखी भी हमें उनकी प्यारी लगे

२ जुलाई २०१२

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