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ज्योत्सना शर्मा के कुंडलिया

 

 

बाँचो पाती नेह की



बाँचो पाती नेह की, नयना मन के खोल,
वाणी का वरदान हैं, बस दो मीठे बोल।
बस दो मीठे बोल, बडी़ अदभुत है माया,
भले कठिन हो काज, सरल ही हमने पाया।
समझाती सब सार, साँस यह आती जाती,
क्या रहना मगरूर, नेह की बाँचो पाती।



बोलें जिनके कर्म ही, ओज भरी आवाज़,
ऐसे दीपित से रतन, जनना जननी आज।
जनना जननी आज, सुता झाँसी की रानी,
वीर शिवा सम पुत्र, भगत से कुछ बलिदानी।
कुछ बिस्मिल आज़ाद, नाम अमृत रस घोलें,
गाँधी और सुभाष, भारती माँ जय बोलें।



कमल कली सी कामिनी, कविता बहुत सुहाय,
चाहूँ रूप अनूप जो, मन तक मन नहि जाय।
मन तक मन नहि जाय, भाव की कडि़याँ टूटें,
चुनूँ बनाऊँ हार, हाथ से लडि़याँ छूटें
कविता रस परिपूर्ण, लगे सब भाँति भली सी,
देना माँ आशीष, खिले बस कमल कली सी।



राधा की पायल बनूँ, या बाँसुरिया, श्याम,
दोंनों के मन में रहूँ, इच्छा यह अभिराम।
इच्छा यह अभिराम, बजूँगी वृन्दावन में,
दो बाँसुरिया देख, दुखी हों राधा मन में।
हो उनको संताप, मिलेगा सुख बस आधा,
कान्हा के मन वास, चरण में रख लें राधा।



जब सोने से दिन रहें, चाँदी जैसी रात,
तब भी हम करते रहें, तुमसे मन की बात।
तुमसे मन की बात, अधर पर नाम तुम्हारा,
कैसे भूलें कहो, मन्त्र जो सबसे प्यारा।
दया दृष्टि ना हटे, दिखाना राह् सही तब,
लगें तोलने प्रेम, तुला पर सोने से जब।

२४ सितंबर २०१२

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