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बागों में बेला खिला
 

बागों में बेला खिला, महके धरती छोर।
पवन चली मद मस्त हो, हुई सुहानी भोर

जुही चमेली झर रहे, अमलतास के बीच
बेला झुक झुक कह रहा, डाली तू मत खींच

जाग रहा है मोगरा, पिय आवन की आस
वेणी में अब गूँथ दो, उड़ने लगी सुवास

गजरे बेला के लिये, घर आये श्रीमान
पत्नी रूठी ही रही, त्योरी चढीं कमान

उपवन में उगने लगे, भाँति-भाँति के फूल
छूने में थे रेशमी, संग लिए तिरशूल

आँखों से आँसू गिरे, निकसत नाहीं बोल
बेला टीसे ह्रदय में, विरह वेदना घोल

मस्त पवन होकर करे अब बेला से बात
झोली भर भर ला रही, गंधों की सौगात

गजरे फूलों के सजे, सजे गंध के पाँव
चला मोगरा साथ में, बासंती के गाँव

गर्मी में सब भर गए, सुर्ख कमलदल ताल
चन्दन खुशबू में बसे, सजे मोगरा थाल

महक उठा सुनसान में, बेला आधी रात
जैसे गुम सुम प्रेयसी, की आँखों में बात

- आभा सक्सेना
२२ जून २०१५

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