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झूम झूम फिर महका बेला
 

ढली साँझ चंदा मुस्काया
झूम-झूम फिर महका बेला

गमक रहा गोधूली में
आतुर होकर दहका
प्रियतम संग प्रीत लगी
तो गजरे में बहका

सुबह तलक संगीत सुनाया
झूम-झूम फिर महका बेला

हरियल डालों के ऊपर
श्वेताभा में लहका
चुरा चुरा कर नींदों को
वह रातों में दहका

देख चंद्रमा को शरमाया
झूम-झूम फिर महका बेला

धरा बधू के आँचल में
फिर तारों सा चहका
चुरा पवन की शीतलता को
आँगन में छिड़का

मंद मंद झूमा हर्षाया
झूम-झूम फिर महका बेला

-‎ अलका‬ गुप्ता
१५ जून २०१५

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