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पिछवाड़े बेला गमके
 

दरवाजे निंबिया से गिरतीं निमकौड़ी
डाली डाली चिड़ियाँ फिरती हैं दौड़ी
आँगन में पायल खनके
पिछवाड़े बेला गमके

जेठ की दुपहरी, ये झुलसाते दिन
आषाढ़ी पुरवा, ये उमसाते दिन
बरसेंगे सावन बनके
पिछवाड़े बेला गमके

कंक्रीट के जंगल, पत्थर के गाँव
चाहते कनेरों से, पीपल सी छाँव
धरती की चूनर सरके
पिछवाड़े बेला गमके

जल-प्रपात जंगल हों, बलखाती नदियाँ हों
घर-घर मुस्कान लिये, सुकुमारी कलियाँ हों
पोर पोर जीवन छलके
पिछवाड़े बेला गमके

- अनिल कुमार वर्मा
१५ जून २०१५

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