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रात सेज पर बेला
 

सारी रात सेज पर बेला
महक-महक रोया

दो तकियों के बीच
न जाने कैसा युद्ध हुआ
नयन लड़े कुछ कहे बिना ही
स्वर अवरुद्ध हुआ
मौन लगाकर गले भोर तक
हुसक-हुसक रोया

चोट मिली ऐसी अनदेखी
घाव नहीं कोई
अनब्याही सी रही सुगंधें
भाव नहीं कोई
क़ैद रहा जूड़े में ख़ुद को
मसक-मसक रोया

अकुलाती सन्यासिनि सिलवट
हवन करें साँसें
कंगन, सेंदुर, पायल सबकी
अलग-अलग प्यासें
हुई समर्पित देह मग़र मन
दहक-दहक रोया

- भावना तिवारी
१५ जून २०१५

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