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सुधियों का बेला महक रहा
 

रह रह कर मन में सुधियों का
बेला महक रहा

आसमान पर घिर आये
ऊदे भूरे बादल
और टीन की छत पर बजती
बूँदों की पायल
धीरे धीरे घट जायेगा
आतप बहुत सहा
रह रह कर मन में सुधियों का
बेला महक रहा

सोंधी सोंधी गंध उठ रही
महक रही माटी
बना हुआ है घर आँगन भी
फूलों की घाटी
ठनगन करती गौरैया का
जोड़ा थिरक रहा
रह रह कर मन में सुधियों का
बेला महक रहा

पवन दूर से लेकर आया
रसभीनी पाती
किरण ओढ़ बदली का घूँघट
हँसती छिप जाती
मिला गुलाल सुनहरे रंग में
खिल खिल दमक रहा
रह रह कर मन में सुधियों का
बेला महक रहा

- मधु प्रधान
१५ जून २०१५

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