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खिल उठा है मोगरा
 

भीत पर अँगड़ाई लेकर
खिल उठा है मोगरा।

पल्लवों के मध्य कितने
श्वेत तारे झाँकते हैं।
गाँव में छुपकर कि जैसे
लोग 'कुछ-कुछ' ताकते हैं।

मालती-सा मन हुआ
हर, क्षण हुआ खुशियों भरा।

मोगरामय देह सारी
हो गई है एक पल में
माथ उनका छू लिया था
देखकर प्रतिबिम्ब जल में।

मल्लिका गज़रा सजा था
केशुओं में छरहरा।

नीर की इक बूँद आकर
यों ठहरती है अधर पर
शबनमी बरसात जैसे
हो गयी हो मोगरा पर।

अब हवायें गा रही हैं
राग कोई दादरा।

भीत पर अँगड़ाई लेकर
खिल उठा है मोगरा।

- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
१५ जून २०१५

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