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बेला कुछ तो कहो
 

मन में लहरें
नींद न आँखों
तिस पर आधी रात
ओ बेला, कुछ तो कहो

अहसासों में रेत-दुपहरी
नाम उचारें साँसें गहरी
मनचाहे हों लाख दिलासे
चिन्ता लेकिन चिन्ता ठहरी

नस-नस तनती
पीर न जाने
मनवा पीपल पात
ओ बेला, कुछ तो कहो!

नजरों वाली धनुष-कटारी
गुनती रात अकेली सारी
निठुर न कोई उनके जैसा
किसके आगे किस्मत हारी

किससे बोलूँ
किन शब्दों में
क्या मेरे हालात?
ओ बेला, कुछ तो कहो!

उम्मीदों में बहते जाना
उम्मीदों बिन रहते जाना
बिन बिजली की बन्द गली सी
अँधेरे को सहते जाना

फिर भी पलकें
फड़क रही हैं
क्या समझूँ बेबात?
ओ बेला, कुछ तो कहो!

- सौरभ पाण्डेय
१५ जून २०१५

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