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आओ देवदारु तले
 

आओ देवदारु तले
कुछ सपने बोये हम

पाखी हवाओं के
मधुमय उमंग लिए
खटकायें साँकल फिर
नए रूप-रंग लिए

पीर के पहाड़ों को
कब तक यों ढोयें हम

ताग-ताग बुनना है
शब्द-शब्द चुनना है
वक़्त की रवानी में
नदिया सा बहना है

आखर के मोती
फिर से पिरोयें हम

- मधु प्रधान  
 
१५ मई २०
१६

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