अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

दो क्षणिकाएँ

 
सच कहा

सच कहा तुमने
कमल सिर्फ कीचड़ में खिलते हैं
कल ही
शहर की गन्दी बस्ती में मैंने
कमल के झुण्ड देखे थे,
हां बहुत प्यारे से बच्चे थे वो
बिलकुल कमल के फूल जैसे!

--नीलेश माथुर

योगी और कमल

एक योगी और
एक कमल मे
महान समता है...
एक
संसार मे रहकर भी
उसमे नहीं रमता
दूजा कीचड़ में जमकर भी
वैसा नहीं बनता.

--संस्कृता मिश्रा
२१ जून २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter