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कवि का आभार

   
कवि का आभार
हे सुमराज कमल,
अच्छा हुआ तुम थे
मेरे भावों को रूपित करने के लिए,
निराकार विचारों को
साकारता देने क लिए
अच्छा हुआ तुम थे
कविता मेरी
आभारी है तुम्हारी
कि तुमने उपमान बनकर
उपकृत किया
मेरे अनगिनत उपमेयों को
कामिनी के निद्रित और
मादक
लोचनों का सौंदर्य
समझाया पाया मैं
लेकर आश्रय
तुम्हारे अधखिली और
ओस की बूँदों से भीगी
प्रभातकालीन पंखुड़ियों का
कभी लीला कमलप त्रों के प्रयोग से
मैं उपमागुरु कालिदास बना
कभी कंजमुख से पद तक
कोमलकांत पदावली रचकर
हिन्दी का सूरमा
तुलसीदास कहलाया
कहीं शतदल, कहीं अरविन्द
तो कहीं पद्म के पर्याय से
तुम हर छंद में
मात्राओं के अनुसार
ढल गए
मेरी उत्प्रेक्षा
उपमाओं और दृष्टान्तों का प्रयोग करने
की हसरत को पूरा करने में
सबसे ज़्यादा तुमने ही
मेरा साथ निभाया
मुझे कवि से कविराज बनाया
हे कविभ्रमर के परम आश्रय,
सदियों की तुम्हारी इस सेवा का
धन्यवाद!
मेरे साहित्य को अपनी तरह
सरस बनाने का
मेरी सृष्टि को
अपने लालित्य से उत्कर्ष देने का
बहुत बहुत
धन्यवाद!


संस्कृता मिश्रा
२१ जून २०१०

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