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वनवास पाए बैठे

 

रसहीन पर्वतों पर धूनी रमाये बैठे
हँसकर अरण्य में भी वनवास पाये बैठे

ये श्वेत पुष्प गुच्छों के छत्र यों सजे हैं
ज्यों रूप धरके वामन तुम पग जमाये बैठे

तपती हवाओं को भी सहकर हुए ना विचलित
कवि श्रेष्ठ की अंजलि में कविता रचाये बैठे

मुरझाये पुष्प कोमल संसार गति के व्यापे
रणभूमि में कुटज तुम हर वार खाये बैठे

हे कुट, दधीचि जैसे कर दान सारा जीवन
औषधि बने, जनों के अंतर में छाये बैठे।

- पूर्णिमा जोशी  
१ जुलाई २०१९

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