अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

छाया घनेरी
 

 

पहले छाया बौर,
निम्बौरी अब आयीं है नीम पर
शाखाओं पर गुच्छे बनकर, अब छायीं हैं
नीम पर

मेरे पुश्तैनी
आँगन में खड़ा हुआ ये पेड़ पुराना,
शीतल छाया देने वाला, लगता हमको बहुत सुहाना,
झूला डाल बालकों ने भी पेंग बढ़ाई
नीम पर

डाली-डाली पर
फिरती है, उछल-कूद करती जाती है,
करने को आराम रात को, कोटर इसे बहुत भाती है,
एक गिलहरी बच्चों के संग, रहने आयी
नीम पर

बिजली करती
आँख-मिचौली, गर्मी बहुत सताती है
इसके नीचे खाट डालकर, नींद चैन की आती है
कौए-चिड़ियों ने भी अपनी कुटी बनायी
नीम पर।

डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक
२० मई २०
१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter