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ये सिरस के फूल
 

चिलचिलाती धूप में भी हँस रहे हैं
ये सिरस के फूल
वन, उपवन, विजन में

लू -लपट को
चूमकर, तनकर चुनौती
दे रहे हैं ये हवा की
साजिशों को
ये किसी देवत्व के
चारण नहीं, बस
गा रहे मौसम समर्थित
बारिशों को

ताप के अभिशाप को तन पर लपेटे
ये सिरस के फूल
संयत आचरण में

किस तरह
विपरीतता की क्रूरता में
जिए कोई मौन रह
वनवासियों सा
चूम कर अंगार ,भी
पर्यावरण के
किस तरह जीवन जिए
सन्यासियों सा

दृश्य हैं, दृष्टांत बनकर जिजीविषा के
ये सिरस के फूल
बरसी हर अगन में

हैं सदा संघर्ष के
साथी विलक्षण
बिन किसी हुंकार के
अवमानना के
झेल कर अस्तित्व पर
सारी विषमता
कर रहे संवाद
पीड़ित यातना के

हैं नहीं पूजित प्रथाओं में कहीं, पर
ये सिरस के फूल
पुजते किन्तु मन में

- जगदीश पंकज  
 
१५ जून २०
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