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शीशम खड़ा हुआ है तन कर
 
शीशम खड़ा हुआ है तन कर

है यह वृक्ष बहुत गुणकारी
दवा बने इस से हितकारी
आँधी आए तूफाँ आए
शीशम नहीं जरा घबराए
सुंदर सहज सजीला सुखमय
खड़ा द्वार पर है बन ठन कर

तीखी धूप घनेरी छाया
बदली ने मन को भरमाया
आसमान पर काले बादल
हुए जा रहे मद में पागल
धरती पर शीशम बेसुध है
बूँदें भिगो रही थम-थमकर

धूप अलगनी पर आ बैठी
मनमानी कितनी और हेठी
फिर भी उसमें दया भाव है
हर घर पहुँचे यही चाव है
शीशम के पत्तों पर बिखरी
चली आ रही है छन छन कर

खिड़की दरवाजे और चौखट
बने जा रहे झटपट झटपट
आलीशान भवन इतराते
काष्ठ से इसकी भवन सजाते
चले कुदाली तुम पर शीशम
देख रहे सब आँखें ढँक कर

- आभा सक्सेना दूनवी 
१ मई २०१९

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