अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

शीशम तुम्हारे पात
 
बीच फागुन में झरे शीशम तुम्हारे पात
लाज से पानी हुआ
कोरा बदन

गुनगुनी सी धूप ने मन को छुआ
आह पहली बार तन को क्या हुआ
कोपलें हर पोर अँखुवाने लगीं
उर थाम-
झूमकर धानी हुआ
कोरा बदन

तुम सदा तपती दुपहरी में हँसे
दिख रहे उतना ही धरती में धँसे
आँधियाँ तूफान कब कुछ कर सकीं,
हर बार-
जीतकर मानी हुआ
कोरा बदन

साँझ ढलते ही महक आने लगी
एक मदमाती गमक छाने लगी
देख पिछवारे खिलीं सिसवारियाँ
नवजात,
रात की रानी हुआ
कोरा बदन

खिड़कियाँ पल्ले व फर्नीचर सजे
जिन्दगी को दे रहे स्वर्गिक मजे
देह के इस दान से ऊँचा हुआ
है माथ-
इस कदर शानी हुआ
कोरा बदन

- उमा प्रसाद लोधी
१ मई २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter