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रिश्ते हों यदि शीशम से
 
कोई दीमक कभी न लगती रिश्ते हों यदि शीशम से,
कभी न चिंता तेज धूप की,कभी न भय गहरे तम से

शीशम जितना हुआ पुराना
जैसे लोहा लाट हुआ,
आँधी-पानी ,तूफानों की
हर मौसम की काट हुआ

वन से आँगन तक की यात्रा इस अनमोल धरोहर की
जैसे देनी कठिन परीक्षा जीवन की सबको क्रम से

चला समय का रंदा ज्यों -ज्यों
निखरा रंग हमारा है,
काट-पीट कर,छील-छालकर
अनगढ़ रूप सँवारा है

औरों के हम काम आ गये जड़ से चेतन हो बैठे,
औरों के हित जीना सीखो आत्म-केंद्रित मनु हम से

जब तक रहे छाँव दी सबको
शीतल मृदुल बयार बही,
अपना सब कुछ अर्पण करके
भौतिकता की मार सही

काश हमारी भी कुछ चिंता स्वार्थ-पुंज मानव करता
कर संरक्षण हमें पालता, निकल लोभ के संभ्रम से

- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 
१ मई २०१९

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